practical aspects of celebrating Shardiya Navratri

practical aspects of celebrating Shardiya Navratri

Shardiya Navratri nine matao ke name

शारदीय नवरात्रि में माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है। ये नौ रूप देवी दुर्गा के अवतार माने जाते हैं। हर दिन एक विशेष रूप की आराधना की जाती है। माता के ये नौ नाम इस प्रकार हैं:

  1. शैलपुत्री
  2. ब्रह्मचारिणी
  3. चंद्रघंटा
  4. कूष्मांडा
  5. स्कंदमाता
  6. कात्यायनी
  7. कालरात्रि
  8. महागौर
  9. सिद्धिदात्र

हर दिन इन देवी रूपों की विशेष पूजा और आराधना की जाती है, जिससे भक्तों को सुख, समृद्धि और शक्ति प्राप्त होती है

1. Shailaputri (शैलपुत्री) mata

शैलपुत्री माता नवरात्रि के पहले दिन की देवी हैं, जो माँ दुर्गा के प्रथम रूप मानी जाती हैं। “शैलपुत्री” का अर्थ है “पर्वत की पुत्री”, क्योंकि वे हिमालय की पुत्री हैं। उनका स्वरूप अत्यंत सौम्य, शांत और दिव्य है।

शैलपुत्री माता का वाहन वृषभ (बैल) है, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। इनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल होता है। ये अपने भक्तों को साहस, शांति और संयम प्रदान करती हैं। इनकी पूजा से मनुष्य को आध्यात्मिक शक्ति और मानसिक शांति प्राप्त होती है। शैलपुत्री माता को प्रकृति और जीवन शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

इनका रंग सफेद होता है, जो पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है। माता शैलपुत्री की पूजा से व्यक्ति को आत्मिक शुद्धता, धैर्य और साहस की प्राप्ति होती है।

2. Brahmacharini (ब्रह्मचारिणी) mata

ब्रह्मचारिणी माता नवरात्रि के दूसरे दिन की देवी हैं। यह माँ दुर्गा का दूसरा स्वरूप हैं और इनका नाम “ब्रह्मचारिणी” का अर्थ है – “ब्रह्म” (तपस्या) का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी माता को तप की देवी माना जाता है, और उनका यह स्वरूप अत्यंत शांत, धैर्यवान और भक्तिपूर्ण है।

माता ब्रह्मचारिणी के दोनों हाथों में माला और कमंडल धारण है। वे सफेद वस्त्र धारण करती हैं, जो साधना और पवित्रता का प्रतीक है। यह देवी अपने भक्तों को त्याग, संयम और तपस्या की शिक्षा देती हैं। उनकी पूजा से व्यक्ति को आत्म-नियंत्रण, साधना और सहनशीलता की शक्ति मिलती है।

कथा के अनुसार, माता ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। उन्होंने हजारों वर्षों तक कठिन व्रत और तप किया, जिससे उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। उनके इसी तप और धैर्य के कारण वे सभी भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

माता ब्रह्मचारिणी की पूजा से साधक को जीवन में संयम, धैर्य, प्रेम और समर्पण की प्राप्ति होती है।

3. Chandraghanta (चन्द्रघण्टा)

चन्द्रघण्टा माता नवरात्रि के तीसरे दिन की आराध्य देवी हैं। ये माँ दुर्गा का तृतीय स्वरूप हैं, जिनकी पूजा करने से भक्तों को साहस, शक्ति और धैर्य प्राप्त होता है। माता का नाम “चन्द्रघण्टा” इसलिए पड़ा क्योंकि इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित है। इस चंद्र के कारण इन्हें चन्द्रघण्टा कहा जाता है।

माता चन्द्रघण्टा का रूप अत्यंत तेजस्वी और अद्भुत है। इनके दस हाथ हैं, जिनमें वे अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं, जैसे – खड्ग, त्रिशूल, गदा, धनुष, बाण, कमल, कमंडल, और माला। इनका वाहन सिंह है, जो उनकी वीरता और शक्ति का प्रतीक है। माता अपने एक हाथ से आशीर्वाद मुद्रा में रहती हैं, जिससे वे अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

माता चन्द्रघण्टा का रंग स्वर्णिम है, और उनका स्वरूप शांत होते हुए भी अत्यधिक शक्ति से भरा हुआ है। युद्ध के समय उनका यह रूप रौद्र और विकराल होता है, जिससे वे राक्षसों का संहार करती हैं। चन्द्रघण्टा माता की पूजा से भक्तों के जीवन में भय का नाश होता है और उन्हें आत्मबल, साहस, और शांति की प्राप्ति होती है।

माता चन्द्रघण्टा की कृपा से साधक को मानसिक शांति, रोगों से मुक्ति और आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है। उनकी पूजा से जीवन में समृद्धि और सौभाग्य आता है।

4. Kushmanda (कूष्माण्डा) mata

कूष्माण्डा माता नवरात्रि के चौथे दिन की आराध्य देवी हैं। ये माँ दुर्गा का चौथा स्वरूप हैं, और इनका नाम “कूष्माण्डा” का अर्थ है – “कू” (छोटा), “उष्मा” (ऊर्जा या गर्मी) और “अंड” (ब्रह्मांड)। ऐसा माना जाता है कि देवी कूष्माण्डा ने अपनी मुस्कान से पूरे ब्रह्मांड की रचना की थी, इसलिए इन्हें सृष्टि की आदिशक्ति भी कहा जाता है। जब सृष्टि में कहीं प्रकाश नहीं था, तब माता कूष्माण्डा ने अपनी दिव्य मुस्कान से पूरे ब्रह्मांड में प्रकाश फैलाया और सृष्टि की रचना की।

माता कूष्माण्डा का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और दिव्य है। इनके आठ हाथ होते हैं, जिनमें वे कमंडल, धनुष, बाण, कमल, अमृत कलश, चक्र, गदा, और एक हाथ में जप माला धारण करती हैं। इनके इस आठ भुजाओं वाले स्वरूप के कारण इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।

माता का रंग चमकता हुआ, स्वर्णिम आभा लिए होता है, जो उनके तेजस्वी और ऊर्जावान स्वरूप को दर्शाता है। उनकी पूजा से भक्तों को स्वास्थ्य, समृद्धि और शक्ति प्राप्त होती है। मान्यता है कि उनकी आराधना से रोग, दुख, और जीवन की कठिनाइयों का नाश होता है।

माता कूष्माण्डा की कृपा से साधक के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और उसे मानसिक शांति के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है। उनके भक्तों को दीर्घायु, सुख-समृद्धि और आरोग्यता प्राप्त होती|

5.Skandamata (स्कंदमाता)

स्कंदमाता नवरात्रि के पांचवें दिन की आराध्य देवी हैं। यह माँ दुर्गा का पाँचवां स्वरूप हैं और उन्हें “स्कंदमाता” कहा जाता है क्योंकि ये भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता हैं। स्कंदमाता अपने पुत्र के साथ विराजमान होती हैं और उनकी पूजा से भक्तों को ज्ञान, भक्ति, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

माता स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत शांत, ममतामयी और दिव्य है। इनके चार हाथ होते हैं। इनके दो हाथों में कमल का पुष्प होता है, एक हाथ में भगवान स्कंद (शिशु रूप में) को गोद में उठाए रहती हैं, और एक हाथ से भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। माता का वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। इन्हें “कमलासना” भी कहा जाता है क्योंकि ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं।

स्कंदमाता का रंग उज्जवल और प्रकाशमान है, जो उनकी दिव्यता और पवित्रता का प्रतीक है। माता की कृपा से भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इन्हें विशेष रूप से मातृत्व का प्रतीक माना जाता है, और उनकी आराधना से संतान सुख, सुरक्षा और संतान की उन्नति प्राप्त होती है।

माता स्कंदमाता की पूजा से साधक को मानसिक शांति, धैर्य और आध्यात्मिक ज्ञान मिलता है। उनकी कृपा से जीवन में हर प्रकार की बाधाएं समाप्त हो जाती हैं, और व्यक्ति को सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है।

6. Katyayani (कात्यायनी) mata

कात्यायनी माता नवरात्रि के छठे दिन की आराध्य देवी हैं। ये माँ दुर्गा का छठा स्वरूप हैं और इन्हें देवी शक्ति का योद्धा रूप माना जाता है। इनका नाम “कात्यायनी” इसलिए पड़ा क्योंकि ऋषि कात्यायन ने कठिन तपस्या कर इन्हें अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त किया था। देवी कात्यायनी अपने भक्तों को साहस, शक्ति और विजय का आशीर्वाद देती हैं।

माता कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत दिव्य और तेजस्वी है। इनके चार हाथ होते हैं। दाहिने दो हाथों में वे तलवार और कमल धारण करती हैं, जबकि बाएं दो हाथों में वे आशीर्वाद और अभय मुद्रा में रहती हैं। माता सिंह पर सवार रहती हैं, जो उनकी वीरता और शौर्य का प्रतीक है।

माता कात्यायनी का रंग स्वर्णिम है और इनका रूप अत्यंत भव्य होता है। इन्हें रणभूमि की देवी भी कहा जाता है, क्योंकि उनका यह रूप बुराई के विनाश और अधर्म का नाश करने के लिए है। विशेषकर महिषासुर का वध करने के लिए इन्होंने अपना यह रूप धारण किया था।

कात्यायनी माता की पूजा से व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार की बुराइयों से मुक्ति मिलती है और वह मानसिक और शारीरिक रूप से बलवान बनता है। उनकी कृपा से भक्त को रोगों से मुक्ति, शत्रुओं पर विजय और जीवन में समृद्धि प्राप्त होती है। माता कात्यायनी की आराधना से साधक को आत्मविश्वास, साहस, और युद्ध में विजय प्राप्त होती है।

भक्तजन उनकी पूजा करके जीवन की हर विपत्ति पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, और उन्हें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। practical aspects of celebrating Shardiya Navratri

7. Kalaratri (कालरात्रि) mata

कालरात्रि माता नवरात्रि के सातवें दिन की आराध्य देवी हैं। माँ दुर्गा का यह सातवां रूप अत्यंत शक्तिशाली, उग्र और रौद्र रूप में जाना जाता है। इन्हें “कालरात्रि” इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका यह स्वरूप अज्ञान, भय, और अधर्म का अंत करने वाला है। कालरात्रि का अर्थ होता है “काल” यानी मृत्यु और “रात्रि” यानी अंधकार, अर्थात् यह देवी काल का नाश करने वाली और समस्त अंधकार को मिटाने वाली हैं।

माता कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक है, लेकिन यह स्वरूप उनके भक्तों के लिए कल्याणकारी है। उनका रंग काला है, जो अंधकार और विनाश का प्रतीक है। इनके बाल बिखरे हुए हैं और इनके गले में विद्युत के समान चमकती माला सुशोभित होती है। इनके चार हाथ हैं – दाहिने दो हाथ अभय और वरद मुद्रा में हैं, जिससे वे अपने भक्तों को आशीर्वाद और सुरक्षा प्रदान करती हैं। बाएं दो हाथों में वे तलवार और लौह (लोहे का) अस्त्र धारण करती हैं। practical aspects of celebrating Shardiya Navratri

माता का वाहन गधा है, जो उनकी विनम्रता और असीम शक्ति का प्रतीक है। इनके नासिका से अग्नि की ज्वालाएँ निकलती हैं, और इनका यह स्वरूप अत्यंत उग्र दिखता है, जो पापियों और दुष्टों के लिए विनाशकारी है। practical aspects of celebrating Shardiya Navratri

हालांकि, माता कालरात्रि का भयंकर रूप उनके भक्तों के लिए अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना जाता है। इसलिए उन्हें “शुभंकारी” भी कहा जाता है। उनकी पूजा करने से भक्तों के सभी भय दूर हो जाते हैं, और वे शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं। माता कालरात्रि की कृपा से साधक को अज्ञान, भय, और बुराई से मुक्ति मिलती है और वह साहस, धैर्य और आत्मविश्वास प्राप्त करता है।

माता कालरात्रि की आराधना से जीवन के हर संकट, रोग, और विपत्तियों का नाश होता है और साधक को विजय, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

8. Mahagauri (महागौरी) mata

महागौरी माता नवरात्रि के आठवें दिन की देवी हैं। ये माँ दुर्गा का आठवां स्वरूप हैं और इन्हें शक्ति, पवित्रता और शांति की देवी माना जाता है। “महागौरी” का अर्थ है “महान और अत्यंत सुंदर”, और यह देवी शुद्धता और दिव्यता का प्रतीक हैं।

माता महागौरी का रूप अत्यंत सुंदर और शांति से भरा हुआ है। उनका रंग दूध जैसा सफेद होता है, जो उनकी पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है। उनके चार हाथ होते हैं – दाहिने हाथ में त्रिशूल और डमरू होता है, और बाएं हाथ में कमल और अभय मुद्रा में होती हैं। माता महागौरी का वाहन वृषभ (बैल) है, जो उनके सौम्य और स्थिर स्वरूप को दर्शाता है।

महागौरी माता की पूजा से भक्तों के जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इन्हें विशेष रूप से संकटमोचक और कल्याणकारी देवी माना जाता है। माता महागौरी का यह स्वरूप अत्यंत करुणामय और भक्तवत्सल होता है, और वे अपने भक्तों के सभी पापों को धोकर उन्हें पूर्ण शांति और आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

मान्यता है कि माता महागौरी का पूजन विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी होता है जो जीवन में कठिनाइयों और समस्याओं का सामना कर रहे हैं। उनकी आराधना से व्यक्ति के सभी संकट दूर होते हैं, और उसे मानसिक शांति और आत्मिक सुख प्राप्त होता है। माता महागौरी की कृपा से जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है, और व्यक्ति अपने लक्ष्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त कर सकता है।

9. Siddhidatri (सिद्धिदात्री) mata

सिद्धिदात्री माता नवरात्रि के नौवें और अंतिम दिन की देवी हैं। ये माँ दुर्गा का नौवां स्वरूप हैं और इन्हें सिद्धियों की दात्री, यानी “सिद्धियों की प्रदायिनी” माना जाता है। “सिद्धिदात्री” का अर्थ होता है – “सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी”। वे अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ और विशेष शक्तियाँ प्रदान करती हैं।

माता सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत दिव्य और शुभ्र होता है। उनके चार हाथ होते हैं। एक हाथ में वह कमल का फूल धारण करती हैं, दूसरा हाथ अभय मुद्रा में होता है, तीसरे हाथ में वह शंख पकड़े हुए हैं और चौथे हाथ में वह चक्र धारण करती हैं। उनका वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।

माता सिद्धिदात्री का रंग श्वेत और अत्यंत चमकदार होता है, जो उनकी पवित्रता और दिव्यता को दर्शाता है। उनका यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों, जैसे – योग, मंत्र, तपस्या, और अन्य अद्भुत शक्तियों को प्राप्त करने का माध्यम है। practical aspects of celebrating Shardiya Navratri

सिद्धिदात्री माता की पूजा करने से भक्तों को सभी प्रकार की मानसिक और आध्यात्मिक सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। उनकी आराधना से व्यक्ति की सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं, और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। माता सिद्धिदात्री के आशीर्वाद से व्यक्ति को सफलता, समृद्धि, और उच्च आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है। practical aspects of celebrating Shardiya Navratri

माता सिद्धिदात्री की पूजा से साधक को अपनी पूरी सामर्थ्य और शक्ति का एहसास होता है, और वह अपने जीवन में सभी कठिनाइयों को पार कर सकता है। उनकी कृपा से जीवन में शांति, सुख और संतुलन आता है, और भक्त को सभी प्रकार की भौतिक और आध्यात्मिक उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं।

Shardiya Navratri kyo bnai jati h

शारदीय नवरात्रि एक प्रमुख हिंदू त्योहार है जो हर साल आश्वयुजा मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है और इसका आयोजन विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में बड़े धूमधाम से किया जाता है। नवरात्रि के इस पर्व को मनाने का मुख्य उद्देश्य देवी दुर्गा की आराधना करना और उनके विभिन्न स्वरूपों की पूजा करके जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि प्राप्त करना है।

शारदीय नवरात्रि के महत्व के प्रमुख कारण:

  1. देवी दुर्गा की आराधना: यह पर्व देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा का समय है। इन स्वरूपों की पूजा से भक्तों को शक्ति, साहस, और भक्ति की प्राप्ति होती है।
  2. बुराई पर अच्छाई की विजय: नवरात्रि का आयोजन विशेष रूप से बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में किया जाता है। यह त्योहार राक्षस महिषासुर के वध के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, जिसे देवी दुर्गा ने अपनी शक्ति से पराजित किया था।
  3. आध्यात्मिक उन्नति: यह पर्व भक्तों के लिए आत्मिक उन्नति और साधना का अवसर होता है। उपवास, पूजा, और ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपनी आत्मा को शुद्ध करता है और मानसिक शांति प्राप्त करता है।
  4. सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व: नवरात्रि सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों का भी केंद्र होता है, जैसे गरबा, डांडिया, और अन्य लोक नृत्य, जो समुदाय के बीच एकता और खुशी का प्रसार करते हैं।
  5. सातत्य और त्याग: इस अवसर पर भक्त विशेष उपवास, साधना, और पूजा करते हैं, जिससे त्याग और साधना के महत्व को समझा जा सके और जीवन में शुद्धता और अनुशासन को अपनाया जा सके।

नवरात्रि के इस पर्व को मनाने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और व्यक्ति को हर प्रकार की बाधाओं और समस्याओं से उबरने की शक्ति प्राप्त होती है। इस पर्व के दौरान की गई पूजा और साधना से भक्तों की सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं और उन्हें देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है।

Shardiya Navratri ke pooja kaisi ke jati h

शारदीय नवरात्रि के दौरान पूजा विधि और अनुष्ठान विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं। इस अवधि के दौरान देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, और यह पर्व श्रद्धा, भक्ति और तपस्या का समय होता है। यहाँ शारदीय नवरात्रि की पूजा की मुख्य विधियाँ दी गई हैं:

  1. पूजा की तैयारी

स्वच्छता और शुद्धता: पूजा से पहले घर को अच्छे से साफ करें। पूजा स्थल को भी शुद्ध करें और स्वच्छता का ध्यान रखें।

पूजा सामग्री: पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जुटाएँ, जैसे – फूल, दीपक, सिंदूर, चंदन, धूप, कपूर, नैवेद्य (भोग), जल, वस्त्र, और प्रसाद।

  1. पूजन विधि
  2. अभिषेक और आह्वान:

पूजा स्थल पर देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र को रखें।

जल से अभिषेक करें और देवी का आह्वान करें। इस दौरान मंत्रों का जाप करें, जैसे – “ॐ देवी दुर्गे नमः”।

  1. अर्चना और पूजन:

देवी की पूजा के लिए फूल, दीपक, और धूप अर्पित करें।

देवी के प्रत्येक स्वरूप के लिए विशेष पूजा और मंत्र का जाप करें, जैसे – पहले दिन शैलपुत्री के लिए “ॐ शैलपुत्र्यै नमः”, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी के लिए “ॐ ब्रह्मचारिण्यै नमः”, आदि।

  1. नैवेद्य (भोग) और प्रसाद:

देवी को नैवेद्य अर्पित करें, जिसमें फल, मिठाई, और अन्य भोज्य पदार्थ शामिल हो सकते हैं।

प्रसाद तैयार करें और भक्तों को वितरित करें।

  1. आरती और पूजा समापन:

देवी की आरती करें और हर दिन एक विशेष आरती की प्रक्रिया अपनाएँ।

पूजा के अंत में देवी से आशीर्वाद प्राप्त करें और उनके चरणों में प्रणाम करें।

  1. उपवास और व्रत

उपवास: कई भक्त पूरे नवरात्रि उपवास करते हैं। कुछ लोग केवल फल और दूध का सेवन करते हैं, जबकि अन्य केवल एक समय भोजन करते हैं।

व्रत: नवरात्रि के दौरान व्रत का पालन करते समय तामसिक आहार (मांस, अंडा, और शराब) से बचना चाहिए और शुद्ध आहार ग्रहण करना चाहिए।

  1. विशेष अनुष्ठान

संध्या पूजा: हर दिन संध्या के समय देवी की पूजा विशेष रूप से महत्व रखती है। संध्या आरती के समय दीपक जलाकर देवी की स्तुति की जाती है। practical aspects of celebrating Shardiya Navratri

सप्तमी और नवमी: विशेष रूप से सप्तमी और नवमी के दिन देवी की पूजा में विशेष ध्यान दें। नवमी के दिन कन्या पूजन (कन्या भोज) का आयोजन किया जाता है, जिसमें कन्याओं को भोजन कराकर उन्हें उपहार दिए जाते हैं। practical aspects of celebrating Shardiya Navratri

  1. अंतिम दिन

विजया दशमी: नवरात्रि के अंतिम दिन विजयादशमी (दशहरा) मनाया जाता है। इस दिन देवी की मूर्ति का विसर्जन या अंतिम पूजा की जाती है, और बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव मनाया जाता है। practical aspects of celebrating Shardiya Navratri

शारदीय नवरात्रि की पूजा एक आध्यात्मिक और धार्मिक अनुष्ठान है, जो भक्तों को देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने और जीवन में सुख-समृद्धि लाने का अवसर प्रदान करता है। practical aspects of celebrating Shardiya Navratri

Happy Shardiya Navratri

“शारदीय नवरात्रि की आपको ढेर सारी शुभकामनाएँ! इस पावन अवसर पर माँ दुर्गा की कृपा आपके जीवन को सुख, समृद्धि और शांति से भर दे। उनके नौ स्वरूपों की पूजा से आपके सभी विघ्न दूर हों और आप सभी प्रकार की खुशियों और समृद्धि से परिपूर्ण हों। माँ दुर्गा के आशीर्वाद से आपके जीवन में हर कठिनाई दूर हो और हर दिन एक नई सफलता लेकर आए।” practical aspects of celebrating Shardiya Navratri

🙏Jay mata di 🙏

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