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गुड़ी पड़वा पूजा: तिथियां और समय 2018 से 2030 तक (Gudi Padwa Drawing With Family)
गुड़ी पड़वा, जिसे महाराष्ट्र में मराठी नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है, एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह दिन न केवल नए वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है, बल्कि एक नई शुरुआत और खुशियों का संदेश भी लाता है। इस लेख में हम गुड़ी पड़वा की पूजा की तिथियों और समय के बारे में जानकारी देंगे।

तिथियां और समय (Gudi Padwa Drawing With Family)
2018 से 2030 तक
- गुड़ी पड़वा: रविवार, 18 मार्च 2018
समय:
- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 17 मार्च 2018 को 18:41 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 18 मार्च 2018 को 18:31 बजे
- गुड़ी पड़वा: शनिवार, 6 अप्रैल 2019
समय:
- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 5 अप्रैल 2019 को 14:20 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 6 अप्रैल 2019 को 15:23 बजे
- गुड़ी पड़वा: बुधवार, 25 मार्च 2020
समय:
- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 24 मार्च 2020 को 14:57 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 25 मार्च 2020 को 17:26 बजे
- गुड़ी पड़वा: मंगलवार, 13 अप्रैल 2021
समय:
- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 12 अप्रैल 2021 को 07:59 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 13 अप्रैल 2021 को 10:16 बजे
- गुड़ी पड़वा: शनिवार, 2 अप्रैल 2022
समय:
- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 1 अप्रैल 2022 को 11:53 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 2 अप्रैल 2022 को 11:57 बजे
- गुड़ी पड़वा: बुधवार, 22 मार्च 2023
समय:
- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 21 मार्च 2023 को 22:52 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 22 मार्च 2023 को 20:20 बजे
- गुड़ी पड़वा: मंगलवार, 9 अप्रैल 2024
समय:
- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 8 अप्रैल 2024 को 23:49 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 9 अप्रैल 2024 को 20:30 बजे
- गुड़ी पड़वा: रविवार, 30 मार्च 2025
समय:
- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 29 मार्च 2025 को 16:26 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 30 मार्च 2025 को 12:48 बजे
- गुड़ी पड़वा: गुरुवार, 19 मार्च 2026
समय:
- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 19 मार्च 2026 को 06:52 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 20 मार्च 2026 को 04:51 बजे
- गुड़ी पड़वा: बुधवार, 7 अप्रैल 2027
समय:- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 7 अप्रैल 2027 को 05:20 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 8 अप्रैल 2027 को 04:27 बजे
- गुड़ी पड़वा: सोमवार, 27 मार्च 2028
समय:- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 26 मार्च 2028 को 10:00 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 27 मार्च 2028 को 11:42 बजे
- गुड़ी पड़वा: शनिवार, 14 अप्रैल 2029
समय:- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 14 अप्रैल 2029 को 03:09 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 15 अप्रैल 2029 को 05:32 बजे
- गुड़ी पड़वा: बुधवार, 3 अप्रैल 2030
समय:- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ: 3 अप्रैल 2030 को 03:31 बजे
- प्रतिपदा तिथि समाप्त: 4 अप्रैल 2030 को 05:17 बजे
गुड़ी पड़वा का महत्व (Gudi Padwa Drawing With Family)
गुड़ी पड़वा केवल एक त्योहार नहीं है; यह नए साल की शुरुआत और एक नई यात्रा की प्रतीक है। महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्र में इसे “संवत्सर पड़वो” के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन एक नए संवत्सर की शुरुआत करता है, जो साठ साल के चक्र में आता है। हर संवत्सर का अपना एक नाम होता है।
कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इस दिन को “उगादी” के रूप में मनाया जाता है। यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार लूनी-सौर कैलेंडर पर आधारित है। इस कैलेंडर में महीनों और दिनों को चंद्रमा और सूर्य की स्थिति के अनुसार विभाजित किया जाता है। इसलिए, भारत के विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष अलग-अलग समय पर मनाया जाता है, जैसे कि तमिलनाडु में “पुथंडू”, पंजाब में “वैसाखी”, और असम में “बिहू”।

गुड़ी पड़वा के त्योहार की परंपराएं (Gudi Padwa Drawing With Family)
गुड़ी पड़वा की सुबह, लोग तेल से स्नान करते हैं और फिर घर में पूजा करते हैं। पूजा में गुड़ी (एक तरह का ध्वज) स्थापित किया जाता है, जो खुशियों और समृद्धि का प्रतीक है। नीम के पत्तों का सेवन करना भी इस दिन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है। उत्तर भारत में, गुड़ी पड़वा के दिन लोग नवरात्रि की पूजा की शुरुआत करते हैं।
गुड़ी पड़वा हर किसी के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है, जो प्रेम, एकता और समृद्धि का संदेश देता है। इस दिन सभी लोग अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर खुशियां मनाते हैं और नए साल की शुरुआत करते हैं।
इस विशेष अवसर पर आप सभी को गुड़ी पड़वा की हार्दिक शुभकामनाएं!

About Gudi Padwa Drawing With Family
गुढ़ी पड़वा के साथ परिवार को दिखाने वाली ड्राइंग बनाने के लिए आप इन विचारों का उपयोग कर सकते हैं:
- गुढ़ी की स्थापना:
परिवार को एक साथ गुढ़ी (सजा हुआ डंडा, जिस पर कपड़ा, फूलों की माला और कलश लगे होते हैं) को घर के बाहर स्थापित करते हुए दिखाएं। - पारंपरिक पोशाक:
परिवार के सदस्य महाराष्ट्र की पारंपरिक पोशाक पहनें। महिलाएं नौवारी साड़ी और पुरुष धोती-कुर्ता या पगड़ी पहने हुए दिखें। - रंगोली बनाते हुए:
बच्चे या महिलाएं गुढ़ी के पास सुंदर रंगोली बनाते हुए दिखाई दें, जिससे त्योहार का माहौल और जीवंत हो जाए। - पूजा करते हुए:
परिवार को गुढ़ी के सामने पूजा और आरती करते हुए दर्शाएं। पूजा की थाली में नारियल, हल्दी, कुमकुम और मिठाई को शामिल करें। - मंगल वातावरण:
पृष्ठभूमि में पेड़, फूल, और सूर्य की रोशनी हो, जिससे ड्राइंग में उत्सव की खुशी झलके। - सामूहिक खुशी:
सभी सदस्य मुस्कुराते हुए और एक-दूसरे के साथ समय बिताते हुए दिखें। यह त्योहार परिवार के साथ बिताए खास पलों को उजागर करेगा।
ड्राइंग को बनाने के लिए चमकीले रंग और पारंपरिक डिज़ाइन का उपयोग करें, ताकि यह गुढ़ी पड़वा के त्योहार की भावना को दर्शा सके।
इतिहास और कहानियां Gudi Padwa Drawing With Family
गुढ़ी पड़वा, जिसे महाराष्ट्र में नववर्ष के रूप में मनाया जाता है, का एक गहरा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि इसे भारत के गौरवशाली इतिहास और परंपराओं से जोड़कर देखा जाता है।
1. गुढ़ी पड़वा और शक संवत (78 ईस्वी)
गुढ़ी पड़वा को शक संवत के आरंभ के साथ जोड़ा जाता है। यह राजा गौतमिपुत्र सातकर्णी और उनके पुत्र यज्ञश्री सातकर्णी के समय की घटना है। उन्होंने शक शासकों पर विजय प्राप्त की थी, जिसे इस संवत की शुरुआत के रूप में मनाया गया। यह दिन भारत में कई पंचांगों के अनुसार नववर्ष का प्रतीक है।
2. मराठा साम्राज्य और छत्रपति शिवाजी महाराज
गुढ़ी पड़वा को मराठा साम्राज्य में एक गौरवशाली दिन के रूप में मनाया जाता था।
- 1674 ईस्वी: छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस दिन को स्वराज्य की स्थापना के प्रतीक के रूप में चुना।
- उन्होंने इसे विजय के प्रतीक के रूप में देखा और मराठा साम्राज्य में गुढ़ी को फहराकर इसे त्योहार का रूप दिया।
- गुढ़ी, जिसे विजय पताका भी कहा जाता है, जीत और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
3. भगवान राम का अयोध्या लौटना
गुढ़ी पड़वा को भगवान राम के अयोध्या लौटने से भी जोड़ा जाता है।
- त्रेता युग: जब भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त कर रावण का वध किया और 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तब उनके स्वागत में अयोध्या के लोगों ने गुढ़ी (विजय पताका) को अपने घरों के बाहर फहराया।
- यह गुढ़ी राम की जीत और अयोध्या में शांति और समृद्धि के आगमन का प्रतीक बनी।
4. प्रकृति और कृषि से संबंध
- कृषि समाज में गुढ़ी पड़वा का महत्व गहरे से जुड़ा है।
- यह वसंत ऋतु की शुरुआत और नई फसल के आगमन का प्रतीक है।
- प्राचीन समय में यह दिन किसानों के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता था क्योंकि यह रबी की फसल कटाई के बाद नई शुरुआत को दर्शाता है।
5. पौराणिक मान्यताएं और ब्रह्मा जी की कथा
- पुराणों के अनुसार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना इसी दिन की थी।
- इस दिन को कल्पारंभ या सृष्टि के आरंभ के रूप में जाना जाता है।
- गुढ़ी ब्रह्मा जी की विजय पताका का प्रतीक मानी जाती है, जो नई सृष्टि के आरंभ की खुशी में फहराई गई थी।
गुढ़ी पड़वा से जुड़ी रोचक कहानियां
- साल 1674: शिवाजी महाराज की राज्याभिषेक से जुड़ी कहानी।
- मौर्य और सातवाहन साम्राज्य: शक शासकों पर विजय का उत्सव।
- रामायण युग: राम की लंका पर जीत और अयोध्या में स्वागत।
- प्रकृति उत्सव: वसंत और नई फसल का आरंभ।
गुढ़ी पड़वा का हर पहलू हमें अपनी संस्कृति और इतिहास की गहराई से जुड़ने का अवसर देता है। यह न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी एक महान पर्व है।