Mithun Sankranti 3 Key Rituals 2020-2030
मिथुन संक्रांति 2025 महत्त्व, अनुष्ठान और पूजा विधि
मिथुन संक्रांति, जिसे विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, विशेष रूप से पूर्वी और दक्षिणी भारत में एक प्रमुख त्योहार है। ओडिशा में इसे ‘रज पर्व’, दक्षिण भारत में ‘आनी’, और केरल में ‘मिथुनम ओंथ’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन सूर्य वृषभ राशि से मिथुन राशि में प्रवेश करता है, जो ज्योतिषीय दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।

मिथुन संक्रांति क्या है
मिथुन संक्रांति के दिन सूर्य का राशि परिवर्तन होता है, जिससे भारतीय परंपराओं और ज्योतिष में इस दिन का विशेष महत्व होता है। इस दौरान विशेष रूप से सूर्य देव और धरती माता की पूजा की जाती है, क्योंकि यह समय फसलों के विकास और बारिश का स्वागत करने का होता है।
मिथुन संक्रांति 2025: तारीख और समय
मिथुन संक्रांति 2025 में 15 जून को है, जो रविवार के दिन पड़ेगी। इस दिन सूर्य सुबह 6:43 बजे मिथुन राशि में प्रवेश करेगा और शुभ मुहूर्त में पूजा की जा सकती है।
- सूर्योदय: 15 जून, 2025, 5:45 पूर्वाह्न
- सूर्यास्त: 15 जून, 2025, 7:09 अपराह्न
- संक्रांति क्षण: 15 जून, 2025, 6:43 पूर्वाह्न
- पुण्य काल मुहूर्त: सुबह 6:43 बजे से दोपहर 1:07 बजे तक
- महा पुण्य काल मुहूर्त: सुबह 6:43 बजे से 7:07 बजे तक
मिथुन संक्रांति का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
यह त्योहार ओडिशा में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व के दौरान लोग बारिश का स्वागत करते हैं। खासकर अविवाहित लड़कियाँ खुद को सुंदर आभूषणों से सजाती हैं और विवाहित महिलाएँ अपने दैनिक कामों से छुट्टी लेकर त्यौहार का आनंद लेती हैं। ओडिशा में इस पर्व को ‘राजा परबा’ के रूप में भी जाना जाता है।

मिथुन संक्रांति के प्रमुख अनुष्ठान
इस दिन भगवान विष्णु और देवी पृथ्वी की विशेष पूजा की जाती है। ओडिशा में पारंपरिक परिधानों में सज-धज कर लोग चक्की के पत्थर की पूजा करते हैं, जो धरती माता का प्रतीक होता है। इसे फूलों और सिंदूर से सजाया जाता है, और युवा लड़कियाँ इस दिन अपने विवाह के लिए तैयार होने की कामना करती हैं।
इस त्योहार का एक और मुख्य आकर्षण बरगद के पेड़ की छाल पर झूला डालना है। लड़कियाँ पारंपरिक गीत गाते हुए झूलती हैं, और इसे त्योहार का अहम हिस्सा माना जाता है। इसके साथ ही, मिथुन संक्रांति पर जरूरतमंदों को वस्त्र दान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।
मिथुन संक्रांति के दौरान खाए जाने वाले खाद्य पदार्थ
इस दिन पारंपरिक व्यंजनों का भी विशेष महत्व है। खासकर ओडिशा में ‘पोडा-पीठा’ नामक व्यंजन तैयार किया जाता है, जिसे गुड़, नारियल, कपूर, और चावल के पाउडर से बनाया जाता है। हालांकि, एक मान्यता यह भी है कि इस दिन चावल से बने भोजन को ग्रहण करने से बचना चाहिए।
सूर्य उपासना का महत्व
मिथुन संक्रांति पर हिंदू धर्म में सूर्य की पूजा का विशेष महत्व होता है। यह त्योहार सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए उपवास और पूजा करने का समय माना जाता है, ताकि आने वाले महीने शांति और समृद्धि से भरपूर हों। ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर में इस दिन विशेष आयोजन होते हैं, जहाँ बड़ी संख्या में भक्त भगवान जगन्नाथ और देवी भूदेवी की पूजा करते हैं।

राजगीता और लोक परंपराएं
इस दिन ओडिशा में लोग लोकगीत ‘राजगीता’ गाते हैं, जो बारिश का स्वागत करने के लिए गाया जाता है। पुरुष और महिलाएँ नंगे पैर चलकर पृथ्वी माता का सम्मान करते हैं और उत्सव के दौरान नृत्य करते हैं। यह त्योहार समाज में एकता और खुशी का प्रतीक है।
मिथुन संक्रांति की तिथियां (2020-2030)
नीचे दिए गए वर्षों के दौरान मिथुन संक्रांति की तिथियां इस प्रकार हैं:
- 2020: 15 जून, सोमवार
- 2021: 15 जून, मंगलवार
- 2022: 15 जून, बुधवार
- 2023: 15 जून, गुरुवार
- 2024: 15 जून, शनिवार
- 2025: 15 जून, रविवार
- 2026: 15 जून, सोमवार
- 2027: 15 जून, मंगलवार
- 2028: 15 जून, गुरुवार
- 2029: 15 जून, शुक्रवार
- 2030: 15 जून, शनिवार
निष्कर्ष
मिथुन संक्रांति एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय और सांस्कृतिक त्योहार है जो सूर्य के राशि परिवर्तन के साथ जुड़ा है। ओडिशा में इसे विशेष रूप से रज पर्व के रूप में मनाया जाता है, जहाँ लोग पारंपरिक रूप से पूजा, उपवास और लोकगीतों के माध्यम से त्योहार का आनंद लेते हैं। यह त्योहार समाज में सौहार्द और समृद्धि का प्रतीक है।
इस ब्लॉग में हमने मिथुन संक्रांति के महत्त्व, अनुष्ठान और त्योहार के दौरान पालन की जाने वाली परंपराओं को विस्तार से बताया है।
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