Nirjala Ekadashi 2024-2030 Essential Guide
2024-2030 में निर्जला एकादशी का महत्व जानें
निर्जला एकादशी का महत्व (2024 – 2030): व्रत और पूजन विधि
निर्जला एकादशी हिंदू धर्म में एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। इसे “भीम एकादशी” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि महाभारत काल में पांडव भीम ने इस व्रत को अपनी भक्ति और श्रद्धा के प्रतीक रूप में अपनाया था। इस एकादशी पर जल का भी त्याग करना होता है, जिससे इसे “निर्जला” कहा गया है। आइए जानते हैं आने वाले वर्षों में निर्जला एकादशी का महत्व, तिथि, और व्रत की विधि।

निर्जला एकादशी क्या है?
निर्जला एकादशी, सभी एकादशियों में सबसे कठिन और पुण्यदायक व्रत माना जाता है। इस दिन व्रती को जल तक का सेवन नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि जो भक्त इस दिन पूर्ण श्रद्धा और नियमों का पालन करते हुए व्रत करते हैं, उन्हें समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
निर्जला एकादशी की तिथि (2024 – 2030)
नीचे आने वाले वर्षों में निर्जला एकादशी की तिथियों की जानकारी दी गई है ताकि आप अपने व्रत की योजना बना सकें:
- 2024: 9 जून
- 2025: 29 मई
- 2026: 18 जून
- 2027: 8 जून
- 2028: 26 मई
- 2029: 15 जून
- 2030: 5 जून
निर्जला एकादशी व्रत की विधि
इस दिन व्रती को प्रातः स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। उन्हें पीले वस्त्र पहनाकर, पुष्प, तुलसी दल और अन्य पूजन सामग्रियों से पूजन करना चाहिए। साथ ही, इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। दिन भर बिना जल ग्रहण किए व्रत धारण करना होता है, और अगले दिन द्वादशी तिथि पर व्रत का पारण करना चाहिए।
निर्जला एकादशी का महत्व और लाभ
निर्जला एकादशी का व्रत करने से न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन में आने वाले अनेक कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। इस व्रत से विशेष रूप से व्यक्ति की इच्छाओं की पूर्ति होती है और यह मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत का पालन करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

निर्जला एकादशी के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें
- इस व्रत में जल का भी सेवन नहीं किया जाता, इसलिए केवल स्वस्थ व्यक्ति ही इस व्रत का पालन करें।
- व्रत का संकल्प लेते समय मन को शुद्ध और एकाग्र रखें।
- व्रत का पालन करते समय दिन भर भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन में मन लगाएं।
- रात्रि में भगवान विष्णु की आरती करके व्रत का समापन करें।
निर्जला एकादशी का धार्मिक और सामाजिक महत्व
इस एकादशी पर उपवास का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इससे व्यक्ति को अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना सिखाया जाता है। साथ ही, समाज में इसे परोपकार और शुद्धता का प्रतीक माना गया है। इस दिन श्रद्धालु दान-पुण्य का कार्य भी करते हैं, जैसे कि अन्न, वस्त्र, और जरूरतमंदों को जलदान करना, जिससे समाज में सद्भावना और समर्पण का वातावरण बनता है।
व्रत का प्रभाव और फल
मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्त कर, उसे भगवान के चरणों में स्थान दिलाता है। धार्मिक दृष्टि से यह व्रत हर एकादशी का संपूर्ण फल प्रदान करता है, इसलिए जो व्यक्ति किसी कारणवश हर एकादशी का व्रत नहीं कर पाता, वह केवल निर्जला एकादशी का व्रत रखकर भी सभी एकादशियों का फल प्राप्त कर सकता है।

समापन
निर्जला एकादशी का व्रत साधना और आत्मसंयम का प्रतीक है। भगवान विष्णु के भक्तों के लिए यह व्रत अत्यंत ही पुण्यदायक और मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है। इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति को जीवन में शांति, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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