5 Facts About Jivitputrika Vrat 2023-2030
जीवित्पुत्रिका व्रत: महत्व और तिथियां (2023-2030)
जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे “जिउतिया व्रत” भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में माताओं द्वारा संतान की लंबी उम्र और सुखमय जीवन के लिए रखा जाता है। खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड के क्षेत्रों में इस व्रत का बड़ा महत्व है। इस पवित्र व्रत के दौरान माताएं निर्जला उपवास करती हैं और अपने बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।
यह व्रत सालाना अश्विन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक दृष्टिकोण से, यह व्रत बच्चों के प्रति माताओं के प्रेम और उनकी भलाई के लिए किए गए त्याग का प्रतीक है।
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत मुख्य रूप से माताओं के लिए संतान की रक्षा और लंबी आयु की कामना का पर्व है। यह व्रत पौराणिक कथा से भी जुड़ा हुआ है, जिसमें सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए कठिन तपस्या की थी। यह त्यौहार भी उसी तरह माताओं द्वारा अपने बच्चों के कल्याण के लिए किया जाता है।
इस व्रत को संतान की लंबी उम्र और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसमें माताएं पूरे दिन बिना जल के उपवास रखती हैं, और विधिपूर्वक पूजा करके अपने बच्चों के जीवन में सुख, शांति और आरोग्य की कामना करती हैं।
व्रत की विधि
जीवित्पुत्रिका व्रत तीन दिन का पर्व होता है। पहले दिन “नहाय-खाय” की परंपरा होती है, जिसमें व्रती महिलाएं पवित्र स्नान करके सात्विक भोजन करती हैं। दूसरे दिन, उपवास शुरू होता है, जिसमें माताएं निर्जला व्रत रखती हैं। इस दौरान वे किसी भी प्रकार का भोजन या जल ग्रहण नहीं करतीं। तीसरे दिन व्रत का समापन होता है, जिसमें पूजा-अर्चना के बाद माताएं प्रसाद ग्रहण करती हैं।
पूरे व्रत के दौरान जिउतिया (मिट्टी या लोहे की बनी एक प्रतीकात्मक वस्तु) की पूजा की जाती है, जो संतान की रक्षा का प्रतीक हो पूरे व्रत के दौरान जिउतिया (मिट्टी या लोहे की बनी एक प्रतीकात्मक वस्तु) की पूजा की जाती है, जो संतान की रक्षा का प्रतीक होती है।
आगामी वर्षों में जीवित्पुत्रिका व्रत की तिथियां (2023-2030)
आइए देखते हैं कि आगामी वर्षों में यह महत्वपूर्ण व्रत किन तिथियों पर पड़ेगा:
- 2023: 6 अक्टूबर
- 2024: 25 सितंबर
- 2025: 15 सितंबर
- 2026: 4 अक्टूबर
- 2027: 23 सितंबर
- 2028: 11 अक्टूबर
- 2029: 1 अक्टूबर
- 2030: 20 सितंबर
इन तिथियों का पालन करके माताएं इस व्रत को विधिपूर्वक कर सकती हैं और अपने बच्चों के दीर्घायु जीवन की प्रार्थना कर सकती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
आधुनिक समय में भी जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व कम नहीं हुआ है। यह व्रत माताओं और उनके बच्चों के बीच के गहरे प्रेम और संबंध का प्रतीक है। जिस तरह सावित्री ने अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए कठिन तपस्या की थी, उसी प्रकार आज की माताएं भी अपनी संतान की भलाई के लिए यह व्रत करती हैं।
सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है, बल्कि परिवार के सदस्यों के बीच आपसी स्नेह और संबंधों को भी प्रकट करता है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपनी संतान के लिए समर्पण का प्रदर्शन करती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व आज के समय में
आज के व्यस्त जीवन में भी जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व बना हुआ है। यह व्रत माताओं और उनके बच्चों के बीच के गहरे प्रेम और रिश्ते को दर्शाता है। समाज में बढ़ती जागरूकता और स्वस्थ जीवन शैली के प्रति रुचि होने के बावजूद, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व वाले त्योहारों को मनाने की परंपरा कम नहीं हुई है। यह व्रत न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है, बल्कि परिवार के सदस्यों के बीच आपसी प्यार और स्नेह को भी बढ़ाता है। 5 Facts About Jivitputrika Vrat 2023-2030
उपसंहार
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व सदियों से बना हुआ है, और यह आने वाले वर्षों में भी माताओं द्वारा उसी आस्था और विश्वास के साथ मनाया जाएगा। चाहे आधुनिक जीवनशैली कितनी भी बदल जाए, लेकिन बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना हर मां के दिल में हमेशा रहती है।
इस व्रत की तिथियां आपको याद रखने में मदद करेंगी कि कब और कैसे इस व्रत को मनाना है। यह पर्व मातृत्व और संतान के प्रति अनमोल प्यार का प्रतीक है, जो आज भी भारतीय समाज में विशेष स्थान रखता है।
Table of Contents
5 Facts About Jivitputrika Vrat 2023-2030 | 5 Facts About Jivitputrika Vrat 2023-2030