Celebrate Santan Saptami Goddess Gauri

Celebrate Santan Saptami Goddess Gauri

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संतान प्राप्ति के लिए हिन्दू धर्म में कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। मुख्य रूप से इन देवताओं की पूजा की जाती है:

  1. संतान गोपाल: भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप को संतान गोपाल कहा जाता है। उनकी पूजा संतान प्राप्ति की कामना से की जाती है। संतान गोपाल मंत्र और व्रत का पालन करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  2. भगवान शिव और माता पार्वती: शिवलिंग की पूजा और माता पार्वती की आराधना भी संतान प्राप्ति के लिए की जाती है। शिव-पार्वती को आदर्श दंपति माना जाता है, और उनकी कृपा से संतान प्राप्ति होती है।
  3. श्रीहनुमान: हनुमान जी की पूजा भी संतान प्राप्ति के लिए की जाती है। हनुमान जी की कृपा से संतान सुख प्राप्त होता है।
  4. संतान लक्ष्मी व्रत: माँ लक्ष्मी का संतान स्वरूप भी संतान सुख के लिए पूजा जाता है। इस व्रत को करने से निःसंतान दंपत्तियों को संतान सुख मिलता है।
  5. राधा-कृष्ण: राधा-कृष्ण की पूजा संतान प्राप्ति के लिए बहुत शुभ मानी जाती है। उनके प्रेम और आशीर्वाद से दंपत्ति को संतान सुख प्राप्त होता है।
  6. *शास्त्रों में उल्लेखित व्रत: जैसे *पुत्रदा एकादशी और संतान सप्तमी का व्रत रखने से भी संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।

इन सभी पूजा-अर्चना और व्रतों को श्रद्धा और विश्वास के साथ करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।

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संतान प्राप्ति के समय स्त्री और पुरुष दोनों के शरीर में कई तरह के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक परिवर्तन होते हैं। ये परिवर्तन गर्भधारण से लेकर संतान के जन्म तक होते हैं। संतान प्राप्ति की प्रक्रिया और इसके दौरान होने वाले मुख्य परिवर्तन इस प्रकार होते हैं:

1. गर्भधारण (Conception)

  • गर्भधारण तब होता है जब पुरुष का शुक्राणु स्त्री के अंडाणु से मिल जाता है। यह मिलन स्त्री के गर्भाशय में होता है, जहाँ अंडाणु निषेचित होकर भ्रूण का निर्माण करता है।
  • गर्भधारण की पुष्टि मासिक धर्म (Periods) बंद होने के बाद की जा सकती है, और इसके बाद महिला को गर्भवती कहा जाता है।

2. शारीरिक परिवर्तन (Physical Changes)

  • गर्भवती स्त्री के शरीर में कई शारीरिक परिवर्तन होते हैं, जैसे कि:
    • वजन बढ़ना
    • पेट का आकार धीरे-धीरे बढ़ना
    • स्तनों का आकार बढ़ना और संवेदनशील होना
    • मतली और उल्टी (खासकर सुबह के समय) जिसे मॉर्निंग सिकनेस कहा जाता है
    • थकान और कमजोरी महसूस होना
    • पीठ और पैरों में दर्द होना
    • बार-बार मूत्र त्याग की इच्छा होना
  • पुरुष के शरीर में संतान प्राप्ति के समय कोई विशेष शारीरिक परिवर्तन नहीं होते, लेकिन मानसिक रूप से वह भी इस समय बदलाव का अनुभव कर सकता है।

3. भावनात्मक परिवर्तन (Emotional Changes)

  • महिला के अंदर गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल बदलाव होते हैं, जिससे कई तरह की भावनात्मक बदलाव महसूस होते हैं, जैसे:
    • मूड स्विंग्स (कभी बहुत खुशी, कभी अचानक दुख या चिड़चिड़ापन)
    • चिंता और तनाव (संतान की सेहत और डिलीवरी के बारे में सोचकर)
    • मातृत्व की भावना (मां बनने का अनुभव)
  • पुरुष भी इस समय में पिता बनने की जिम्मेदारी महसूस करता है। वह भी चिंता, खुशी और उत्सुकता का अनुभव करता है।

4. संतान का विकास (Fetal Development)

  • गर्भ के अंदर भ्रूण धीरे-धीरे विकसित होता है। पहले तीन महीनों में भ्रूण के अंग बनने लगते हैं। चौथे से छठे महीने तक भ्रूण के अंगों का विकास होता है, और सातवें महीने के बाद से शिशु का वजन और आकार बढ़ता है।
  • इस समय महिला को विशेष ध्यान रखना होता है, जैसे पौष्टिक आहार लेना, नियमित रूप से डॉक्टर से जाँच कराना, और तनाव मुक्त रहना।

5. प्रसव (Childbirth)

  • गर्भावस्था की अवधि सामान्यत: नौ महीने (लगभग 40 हफ्ते) होती है।
  • प्रसव के समय संकुचन (Contractions) शुरू होते हैं, जो गर्भाशय को खोलने में मदद करते हैं। इसके बाद शिशु का जन्म होता है।
  • प्रसव सामान्य (नार्मल डिलीवरी) या सर्जरी (सी-सेक्शन) द्वारा हो सकता है, यह स्थिति पर निर्भर करता है।

6. संतान के जन्म के बाद (Postnatal Period)

  • शिशु के जन्म के बाद माता-पिता की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। शिशु की देखभाल, उसकी सेहत का ध्यान, और सही पोषण का प्रबंध करना ज़रूरी होता है।
  • माँ के शरीर में भी प्रसव के बाद शारीरिक बदलाव होते हैं, और उसे पूरी तरह से स्वस्थ होने में कुछ महीने लग सकते हैं।

7. समाज में बदलाव (Social Changes)

  • संतान प्राप्ति के बाद परिवार और समाज में कई प्रकार के बदलाव आते हैं। परिवार में खुशी का माहौल होता है और समाज में दंपत्ति को नई भूमिका (माता-पिता) के रूप में देखा जाता है।
  • संतान होने के बाद दंपत्ति की जिम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं, और उनके जीवन में भी कई प्रकार के बदलाव आते हैं।

8. आध्यात्मिक और धार्मिक प्रभाव (Spiritual and Religious Aspects)

  • हिन्दू धर्म में संतान प्राप्ति को पुण्य कर्म माना जाता है। संतान को माता-पिता के पूर्वजों का आशीर्वाद भी कहा जाता है, और संतान को वंश आगे बढ़ाने वाला माना जाता है।
  • संतान प्राप्ति के लिए भगवान की पूजा-अर्चना और विशेष व्रतों का पालन किया जाता है, ताकि संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त हो।

संतान प्राप्ति का यह सफर शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन इसके साथ ही यह जीवन में अनमोल खुशी और संतोष का अनुभव भी कराता है

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संतान प्राप्ति के लिए व्रत और पूजा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। हिंदू धर्म में व्रत और पूजा की परंपरा का उल्लेख वैदिक काल और पुराणों में मिलता है, जो हजारों वर्षों से पालन की जा रही है।

1. वैदिक काल में व्रत

वैदिक काल के धर्मग्रंथों में संतान प्राप्ति के लिए विशेष यज्ञ और अनुष्ठानों का उल्लेख मिलता है। उस समय संतान प्राप्ति को वंश को आगे बढ़ाने और पारिवारिक खुशहाली का प्रतीक माना जाता था। पुत्रेष्टि यज्ञ इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जो राजा दशरथ ने भगवान राम को प्राप्त करने के लिए किया था।

2. पुराणों में संतान व्रत

पुराणों में संतान प्राप्ति के लिए विशेष व्रतों और पूजा-पाठ का वर्णन मिलता है। *पुत्रदा एकादशी, *संतान सप्तमी और संतान गोपाल व्रत जैसे व्रतों का उल्लेख विभिन्न पुराणों में किया गया है। इन व्रतों का पालन संतान सुख की कामना से किया जाता है।

3. महाभारत और रामायण में व्रत

महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों में भी संतान प्राप्ति के लिए व्रत और अनुष्ठानों का जिक्र है। उदाहरण के लिए, कुंती ने भगवान सूर्य की पूजा कर कर्ण को प्राप्त किया था। इसी तरह, शिव-पार्वती की पूजा और व्रत भी संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है, जो महाभारत और अन्य धर्मग्रंथों में भी वर्णित है।

4. लोक परंपराएं

हिंदू धर्म के अलावा भी लोक परंपराओं में संतान प्राप्ति के लिए व्रत और पूजा का महत्व है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी महिलाएं विशेष व्रत रखती हैं, जैसे *संतान सप्तमी व्रत, **हरतालिका तीज, और *करवा चौथ, जिसमें वे संतान और पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

इस प्रकार, संतान प्राप्ति के लिए व्रत और पूजा की परंपरा सदियों पुरानी है और यह वैदिक काल से लेकर आज तक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है।

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संतान प्राप्ति के लिए पूजा और व्रत करने का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। सही समय पर पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। यहां विस्तार से बताया गया है कि संतान प्राप्ति के लिए पूजा कब और कैसे करनी चाहिए:

1. एकादशी व्रत (Putrada Ekadashi)

  • *समय: यह व्रत साल में दो बार आता है पौष शुक्ल एकादशी (दिसंबर-जनवरी) और श्रावण शुक्ल एकादशी (जुलाई-अगस्त) के महीने में।
  • महत्व: पुत्रदा एकादशी व्रत संतान प्राप्ति की कामना से किया जाता है। इसे करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  • पूजा का समय: एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके पूजा की जाती है और पूरे दिन उपवास रखा जाता है।

2. संतान गोपाल पूजा

  • समय: इस पूजा के लिए कोई विशेष तिथि निश्चित नहीं होती, लेकिन इसे किसी शुभ मुहूर्त या शुभ दिन जैसे गुरुवार, पूर्णिमा, या कृष्ण जन्माष्टमी के दिन किया जा सकता है।
  • महत्व: संतान गोपाल भगवान श्रीकृष्ण का बाल रूप हैं। उनकी पूजा संतान प्राप्ति के लिए की जाती है।
  • पूजा का समय: प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर शुद्ध होकर पूजा प्रारंभ करें। भगवान कृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाकर, मंत्रों का जाप करें और उन्हें दूध, दही, मक्खन आदि का भोग अर्पित करें।

3. शिव-पार्वती की पूजा

  • *समय: संतान प्राप्ति के लिए सोमवार, महाशिवरात्रि, और श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • महत्व: भगवान शिव और माता पार्वती को आदर्श दंपति माना जाता है। उनकी पूजा संतान प्राप्ति की कामना से की जाती है।
  • पूजा का समय: इस पूजा को सुबह सूर्योदय से पहले किया जाता है। शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र चढ़ाकर पूजा की जाती है और संतान सुख की कामना की जाती है।

4. संतान सप्तमी व्रत

  • समय: यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि (अगस्त-सितंबर) को किया जाता है।
  • महत्व: संतान सप्तमी व्रत संतान प्राप्ति और संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है।
  • पूजा का समय: सप्तमी के दिन प्रातःकाल स्नान कर व्रत धारण करें। पूरे दिन उपवास कर शाम को देवी की पूजा करें और व्रत कथा सुनें।

5. गुरुवार व्रत (बृहस्पतिवार व्रत)

  • *समय: संतान प्राप्ति के लिए गुरुवार को भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की पूजा की जाती है।
  • महत्व: गुरुवार व्रत से संतान सुख और पारिवारिक समृद्धि प्राप्त होती है।
  • पूजा का समय: सुबह स्नान के बाद भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की पूजा करें। पीले वस्त्र पहनकर पीले फल और मिठाई का भोग अर्पित करें।

6. नवरात्रि में पूजा

  • समय: नवरात्रि (मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर) के समय माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इन दिनों में संतान प्राप्ति की कामना से देवी दुर्गा या कात्यायनी माता की पूजा की जा सकती है।
  • महत्व: नवरात्रि में माता की पूजा संतान प्राप्ति के लिए बहुत फलदायी मानी जाती है।
  • पूजा का समय: नवरात्रि के नौ दिनों में प्रातःकाल या संध्या के समय देवी की पूजा की जाती है।

7. पुत्रकामेष्टि यज्ञ

  • समय: यह यज्ञ विशेष रूप से संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। इसे शुभ मुहूर्त और पंडितों द्वारा निर्धारित तिथि पर किया जाता है।
  • महत्व: इस यज्ञ के माध्यम से भगवान से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
  • पूजा का समय: इस यज्ञ को करने के लिए विशेष रूप से किसी विद्वान पंडित की मदद ली जाती है। इसे प्रातःकाल या शुभ मुहूर्त में किया जाता है।

8. हरतालिका तीज

  • समय: यह व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि (अगस्त-सितंबर) को किया जाता है।
  • महत्व: इस व्रत को विशेष रूप से संतान प्राप्ति और पति की दीर्घायु के लिए किया जाता है।
  • पूजा का समय: इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती हैं।

9. सूर्य पूजा

  • समय: संतान प्राप्ति के लिए रविवार के दिन सूर्य भगवान की पूजा करना लाभकारी होता है।
  • महत्व: सूर्य भगवान संतान प्राप्ति के लिए शक्ति और स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं।
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