Janmashtami festival 2025
जन्माष्टमी महत्व और उत्सव
हम जन्माष्टमी क्यों मनाते हैं
कृष्ण जन्माष्टमी हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहारों में से एक है। इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। यह मान्यता है कि लगभग पाँच हज़ार साल पहले, द्वापर युग में, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा नगरी में आधी रात को हुआ था। जन्माष्टमी को भारत भर में अलग-अलग नामों से जैसे गोकुलाष्टमी, सतम आठम, श्रीकृष्णाष्टमी, श्रीकृष्ण जयंती और अष्टमी रोहिणी के रूप में मनाया जाता है।

जन्माष्टमी के पर्व का महत्व
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार अगस्त या सितंबर महीने में आता है और रोहिणी नक्षत्र में इसे मनाया जाता है। जन्माष्टमी का एक महत्वपूर्ण और रोचक पहलू दही हांडी की परंपरा है। इस परंपरा में युवा लड़कों की टीमें पिरामिड बनाकर ऊंचाई पर बंधी मटकी को तोड़ती हैं, जिसमें दही या माखन भरा होता है। यह भगवान श्रीकृष्ण की माखन चोरी की लीला को दर्शाता है। भगवान कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ था, इसलिए कृष्ण जन्मोत्सव भी आधी रात को मनाया जाता है और अगले दिन दही हांडी उत्सव का आयोजन किया जाता है।
जन्माष्टमी व्रत का महत्व
जन्माष्टमी के दिन, भक्तगण भगवान श्रीकृष्ण के लिए व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाले भक्त सुबह स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेते हैं और अगले दिन, जब अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र समाप्त हो जाते हैं, तब व्रत का पारण करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की पूजा रात्रि के मध्यकाल (निशिता काल) में की जाती है। पूजा के दौरान भक्त ‘हरे राम हरे कृष्ण’ मंत्र का उच्चारण करते हैं और पूजा विधि के अनुसार शोडशोपचार पूजा करते हैं, जिसमें सोलह प्रकार की पूजा सामग्री का उपयोग होता है।

जन्माष्टमी कैसे मनाई जाती है
जन्माष्टमी के अवसर पर भक्तगण उपवास रखते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की कथाओं का श्रवण करते हैं। मंदिरों को फूलों और दीपों से सजाया जाता है और भगवान श्रीकृष्ण की झांकियां सजाई जाती हैं। बच्चे राधा-कृष्ण की वेशभूषा में नाटक करते हैं। मध्यरात्रि के बाद भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है, अर्पण किया जाता है और आरती की जाती है। भक्तजन घरों में मीठे पकवान बनाते हैं और प्रसाद बांटते हैं।
प्रसिद्ध स्थान जहाँ जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाती है
जन्माष्टमी का पर्व विशेष रूप से वृंदावन और मथुरा में भव्य रूप से मनाया जाता है, क्योंकि यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़े हुए हैं। इन स्थानों पर दही हांडी का आयोजन होता है और भक्तगण भगवान श्रीकृष्ण के जन्म को बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं। इसके अलावा, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और द्वारका जैसे स्थानों पर भी इस पर्व को पूरे उत्साह से मनाया जाता है।
विभिन्न सम्प्रदायों में जन्माष्टमी की तिथियों का भेद
कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व को दो अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है। वैष्णव संप्रदाय और स्मार्ट संप्रदाय के अनुयायी अपने-अपने पंचांग के अनुसार जन्माष्टमी मनाते हैं। यदि तिथि एक होती है, तो दोनों संप्रदाय एक ही दिन पर्व मनाते हैं, लेकिन यदि तिथि अलग होती है, तो स्मार्ट संप्रदाय पहले दिन और वैष्णव संप्रदाय अगले दिन जन्माष्टमी मनाता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
- जन्माष्टमी कब होती है?
जन्माष्टमी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आती है। - जन्माष्टमी क्या है?
जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव है। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं। - मंदिर को जन्माष्टमी पर कैसे सजाएँ?
मंदिर को फूलों, दीपों, रंगोली और अन्य सजावटी वस्तुओं से सजा सकते हैं। आप मटकी सजाकर दही हांडी बना सकते हैं और कृष्णजी की झांकी भी सजा सकते हैं। - घर पर जन्माष्टमी की पूजा कैसे करें?
पूजा करने से पहले घर की सफाई करें और मंदिर को सजाएँ। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या बाल कृष्ण की झांकी स्थापित करें। रात्रि में भगवान का जन्मोत्सव मनाकर प्रसाद चढ़ाएं। - जन्माष्टमी कैसे मनाएं?
उपवास रखें, भगवान श्रीकृष्ण के मंत्रों का जाप करें, घर को सजाएँ और भगवान को अर्पित किए गए प्रसाद से व्रत खोलें।
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